30-03-2000  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मन को दुरूस्त रखने के लिए बीच-बीच में 5 सेकेण्ड भी निकाल कर मन की एक्सरसाइज़ करो

आज दूरदेशी बापदादा अपने साकार दुनिया के भिन्न-भिन्न देशवासी बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा भिन्न-भिन्न देशवासियों को एक देशवासी देख रहे हैं। चाहे कोई कहाँ से भी आये हो लेकिन सबसे पहले सभी एक ही देश से आये हो। तो अपना अनादि देश याद है ना! प्यारा लगता है ना! बाप के साथ-साथ अपना अनादि देश भी बहुत प्यारा लगता है ना!

बापदादा आज सभी बच्चों के पाँच स्वरूप देख रहे हैं, जानते हो पांच स्वरूप कौन से हैं? जानते हो ना! 5 मुखी ब्रह्मा का भी पूजन होता है। तो बापदादा सभी बच्चों के 5 स्वरूप देख रहे हैं।

पहला - अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप। याद है ना अपना स्वरूप? भूल तो नहीं जाते? दूसरा है - आदि देवता स्वरूप। पहुँच गये देवता स्वरूप में? तीसरा - मध्य में पूज्य स्वरूप, वह भी याद है? आप सबकी पूजा होती है या भारतवासियों की होती है? आपकी पूजा होती है? कुमार सुनाओ आपकी पूजा होती है? तो तीसरा है पूज्य स्वरूप। चौथा है - संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप और लास्ट में है फरिश्ता स्वरूप। तो 5 ही रूप याद आ गये? अच्छा एक सेकण्ड में यह 5 ही रूपों में अपने को अनुभव कर सकते हो? वन, टू, थ्री, फोर, फाइव... तो कर सकते हो! यह 5 ही स्वरूप कितने प्यारे हैं? जब चाहो, जिस भी रूप में स्थित होने चाहो, सोचा और अनुभव किया। यही रूहानी मन की एक्सरसाइज़ है। आजकल सभी क्या करते हैं? एक्सरसाइज़ करते हैं ना! जैसे आदि में भी आपकी दुनिया में (सतयुग में) नेचुरल चलते-फिरते की एक्सरसाइज़ थी। खड़े होकर के वन, टू, थ्री.... एक्सरसाइज़ नहीं। तो अभी अन्त में भी बापदादा मन की एक्सरसाइज़ कराते हैं। जैसे स्थूल एक्सरसाइज़ से तन भी दुरूस्त रहता है ना! तो चलते-फिरते यह मन की एक्सरसाइज़ करते रहो। इसके लिए टाइम नहीं चाहिए। 5 सेकण्ड कभी भी निकाल सकते हो या नहीं! ऐसा कोई बिज़ी है, जो 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके! है कोई, तो हाथ उठाओ। फिर तो नहीं कहेंगे - क्या करें टाइम नहीं मिलता? यह तो नहीं कहेंगे ना! टाइम मिलता है? तो यह एक्सरसाइज़ बीच-बीच में करो। किसी भी कार्य में हो 5 सेकण्ड की यह मन की एक्सरसाइज़ करो। तो मन सदा ही दुरूस्त रहेगा, ठीक रहेगा। बापदादा तो कहते हैं - हर घण्टे में यह 5 सेकण्ड की एक्सरसाइज़ करो। हो सकती है? देखो, सभी कह रहे हैं - हो सकती है। याद रखना। ओमशान्ति भवन याद रखना, भूलना नहीं। तो जो मन की भिन्न-भिन्न कम्पलेन है ना! क्या करें मन नहीं टिकता! मन को मण बना देते हो। वज़न करते हैं ना! पहले जमाने में पाव, सेर और मण होता था, आजकल बदल गया है। तो मन को मण बना देते हैं बोझ वाला और यह एक्सरसाइज़ करते रहेंगे तो बिल्कुल लाइट हो जायेंगे। अभ्यास हो जायेगा। ब्राह्मण शब्द याद आये तो ब्राह्मण जीवन के अनुभव में आ जाओ। फरिश्ता शब्द कहो तो फरिश्ता बन जाओ। मुश्किल है? नहीं है? कुमार बोलो थोड़ा मुश्किल है? आप फरिश्ते हो या नहीं? आप ही हो या दूसरे हैं? कितने बार फरिश्ता बने हो? अनगिनत बार बने हो। आप ही बने हो? अच्छा। अनगिनत बार की हुई बात को रिपीट करना क्या मुश्किल होता है? कभी-कभी होता है? अभी यह अभ्यास करना। कहाँ भी हो 5 सेकण्ड मन को घुमाओ, चक्कर लगाओ। चक्कर लगाना तो अच्छा लगता है ना! टीचर्स ठीक है ना! राउण्ड लगाना आयेगा ना? बस राउण्ड लगाओ फिर कर्म में लग जाओ। हर घण्टे में राउण्ड लगाया फिर काम में लग जाओ क्योंकि काम को तो छोड़ नहीं सकते हैं ना! ड्युटी तो बजानी है। लेकिन 5 सेकण्ड, मिनट भी नहीं, सेकण्ड। नहीं निकल सकता है? निकल सकता है? यू. एन. की आफिस में निकल सकता है? मास्टर सर्वशक्तिवान हो। तो मास्टर सर्वशक्तिवान क्या नहीं कर सकता!

बापदादा को एक बात पर बच्चों को देख करके मीठी-मीठी हँसी आती है। किस बात पर? चैलेन्ज करते हैं, पर्चा छपाते हैं, भाषण करते हैं, कोर्स कराते हैं। क्या कराते हैं? हम विश्व को परिवर्तन करेंगे। यह तो सभी बोलते हैं ना! या नहीं? सभी बोलते हैं या सिर्फ भाषण करने वाले बोलते हैं? तो एक तरफ कहते हैं विश्व को परिवर्तन करेंगे, मास्टर सर्वशक्तिवान हैं! और दूसरे तरफ अपने मन को मेरा मन कहते हैं, मालिक हैं मन के और मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। फिर भी कहते हैं मुश्किल है? तो हँसी नहीं आयेगी! आयेगी ना हंसी! तो जिस समय सोचते हो, मन नहीं मानता, उस समय अपने ऊपर मुस्कराना। मन में कोई भी बात आती है तो बापदादा ने देखा है तीन लकीरें गाई हुई हैं। एक पानी पर लकीर, पानी पर लकीर देखी है, लगाओ लकीर तो उसी समय मिट जायेगी। लगाते तो है ना! तो दूसरी है किसी भी कागज पर, स्लेट पर कहाँ भी लकीर लगाना और सबसे बड़ी लकीर है पत्थर पर लकीर। पत्थर की लकीर मिटती बहुत मुश्किल है। तो बापदादा देखते हैं कि कई बार बच्चे अपने ही मन में पत्थर की लकीर के मुआफ़िक पक्की लकीर लगा देते हैं। जो मिटाते हैं लेकिन मिटती नहीं है। ऐसी लकीर अच्छी है? कितना वारी प्रतिज्ञा भी करते हैं, अब से नहीं करेंगे। अब से नहीं होगा। लेकिन फिर-फिर परवश हो जाते हैं। इसलिए बापदादा को बच्चों पर घृणा नहीं आती है, रहम आता है। परवश हो जाते हैं। तो परवश पर रहम आता है। जब बापदादा ऐसे रहम भाव से बच्चों को देखते हैं तो ड्रामा के पर्दे पर क्या आ जाता है? कब तक? तो इसका उत्तर आप दो। कब तक? कुमार दे सकते हैं - कब तक यह समाप्त होगा? बहुत प्लैन बनाते हो ना कुमार! तो कब तक, बता सकते हो? आखिर भी यह कब तक? बोलो। जवाब आता है कब तक? दादियां सुनाओ। (जब तक संगमयुग है तब तक थोड़ा-थोड़ा रहेगा) तो संगमयुग भी कब तक? (जब फरिश्ता बन जायेंगे) वह भी कब तक? (बाबा बतायें) फरिश्ता बनना आपको है या बाप को? तो इसका जवाब सोचना। बाप तो कहेंगे अब, तैयार हैं? आधी माला में भी हाथ नहीं उठाया।

बापदादा सदा ही बच्चों को सम्पन्न स्वरूप में देखने चाहते हैं। जब कहते ही हो, बाप ही मेरा संसार है। यह तो सब कहते हो ना! दूसरा भी कोई संसार है क्या? बाप ही संसार है, तो संसार के बाहर और क्या है? सिर्फ संस्कार परिवर्तन करने की बात है। ब्राह्मणों के जीवन में मैजारिटी विघ्न रूप बनता है - संस्कार। चाहे अपना संस्कार, चाहे दूसरों का संस्कार। ज्ञान सभी में है, शक्तियां भी सभी के पास हैं। लेकिन कारण क्या होता है? जो शक्ति, जिस समय कार्य में लानी चाहिए, उस समय इमर्ज होने के बजाए थोड़ा पीछे इमर्ज होती हैं। पीछे सोचते हैं कि यह न कहकर यह कहती तो बहुत अच्छा। यह करने के बजाए यह करती तो बहुत अच्छा। लेकिन जो समय पास होने का था वह तो निकल जाता है, वैसे सभी अपने में शक्तियों को सोचते भी रहते हो, सहनशक्ति यह है, निर्णय शक्ति यह है, ऐसे यूज़ करना चाहिए। सिर्फ थोड़े समय का अन्तर पड़ जाता है। और दूसरी बात क्या होती है? चलो एक बार समय पर शक्ति कार्य में नहीं आई और बाद में महसूस भी किया कि यह न करके यह करना चाहिए था। समझ में आ जाता है पीछे। लेकिन उस गलती को एक बार अनुभव करने के बाद आगे के लिए अनुभवी बन उसको अच्छी तरह से रियलाइज़ कर लें जो दुबारा नहीं हो। फिर भी प्रोग्रेस हो सकती है। उस समय समझ में आता है - यह रांग है, यह राइट है। लेकिन वही गलती दुबारा नहीं हो, उसके लिए अपने आपसे अच्छी तरह से रियलाइज़ेशन करना, उसमें भी इतना फुल परसेन्ट पास नहीं होते। और माया बड़ी चतुर है, वही बात मानो आपमें सहनशक्ति कम है, तो ऐसी ही बात जिसमें आपको सहनशक्ति यूज़ करना है, एक बार आपने रियलाइज़ कर लिया, लेकिन माया क्या करती है कि दूसरी बारी थोड़ा-सा रूप बदली करके आती है। होती वही बात है लेवि्ान जैसे आजकल के ज़माने में चीज़ वही पुरानी होती है लेकिन पालिश ऐसी कर देते हैं जो नई से भी नई दिखाई दे। तो माया भी ऐसे पालिश करके आती है जो बात का रहस्य वही होता है, मानों आपमें ईर्ष्या आ गई। ईर्ष्या भी भिन्न-भिन्न रूप की है, एक रूप की नहीं है। तो बीज ईर्ष्या का ही होगा लेकिन और रूप में आयेगी। उसी रूप में नहीं आती है। तो कई बार सोचते हैं कि यह बात पहले वाली तो वह थी ना, यह तो बात ही दूसरी हुई ना। लेकिन बीज वही होता है सिर्फ रूप परिवर्तित होता है। उसके लिए कौन-सी शक्ति चाहिए? - `परखने की शक्ति।' इसके लिए बापदादा ने पहले भी कहा है कि दो बातों का अटेन्शन रखो। एक -सच्ची दिल। सच्चाई। अन्दर नहीं रखो। अन्दर रखने से गैस का गुब्बारा भर जाता है और आखिर क्या होगा? फटेगा ना! तो सच्ची दिल - चलो आत्माओं के आगे थोड़ा संकोच होता है, थोड़ा शर्म-सा आता है - पता नहीं मुझे किस दृष्टि से देखेंगे। लेकिन सच्ची दिल से, महसूसता से बापदादा के आगे रखो। ऐसे नहीं मैंने बापदादा को कह दिया, यह गलती हो गई। जैसे आर्डर चलाते हैं - हाँ, मेरे से यह गलती हो गई, ऐसे नहीं। महसूसता की शक्ति से, सच्ची दिल से, सिर्फ दिमाग से नहीं लेकिन दिल से अगर बापदादा के आगे महसूस करते हैं तो दिल खाली हो जायेगी, किचड़ा खत्म। बातें बड़ी नहीं होती है, छोटी ही होती है लेकिन अगर आपकी दिल में छोटी-छोटी बातें भी इकट्ठी होती रहती हैं तो उनसे दिल भर जाती है। खाली तो नहीं रहती है ना! तो दिल खाली नहीं तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! बैठने की जगह तो हो ना! तो सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। जो हूँ, जैसी हूँ, जो हूँ, जैसा हूँ, बाबा आपका हूँ। बापदादा तो जानते ही हैं कि नम्बरवार तो होने ही हैं। इसीलिए बापदादा उस नज़र से आपको नहीं देखेगा। लेकिन सच्ची दिल और दूसरा कहा था - सदा बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। लाइन में डिस्टर्बेंस नहीं हो, कटआफ नहीं हो। बापदादा जो एक्स्ट्रा समय पर शक्ति देने चाहते हैं, दुआयें देने चाहते हैं, एक्स्ट्रा मदद देने चाहते हैं, अगर डिस्टर्बेंस होगी तो वह मिल नहीं सकेगी। लाइन क्लीयर ही नहीं है, क्लीन नहीं है, कटआफ है, तो यह जो प्राप्ति होनी चाहिए वह नहीं होती। कई बच्चे कहते हैं, कहते नहीं हैं तो सोचते हैं - कोई-कोई आत्मा को बहुत सहयोग मिलता, ब्राह्मणों का भी मिलता, बड़ों का भी मिलता, बापदादा का भी मिलता, हमको कम मिलता है। कारण क्या? बाप तो दाता है, सागर है, जितना जो लेने चाहे बापदादा के भण्डारे में ताला-चाबी नहीं है, पहरेदार नहीं है। बाबा कहा, जी हाज़र। बाबा कहा - लो। दाता है ना। दाता भी है और सागर भी है। तो क्या कमी होगी? इन्हीं दो बातों की कमी होती है। एक सच्ची दिल, साफ दिल हो, चतुराई नहीं करो। चतुराई बहुत करते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार की चतुराई करते हैं। तो साफ दिल, सच्ची दिल और दूसरा बुद्धि की लाइन सदा चेक करो क्लीयर है और क्लीन है? आजकल के साइन्स के साधनों में भी देखते हो ना थोड़ी भी डिस्टर्बेंस क्लीयर नहीं करने देती। तो यह ज़रूर करो।

और विशेष बात - इस सीज़न का लास्ट टर्न है ना इसलिए बता रहे हैं, डबल विदेशियों के लिए ही नहीं है, सबके लिए है। लास्ट टर्न में आप सामने बैठे हो तो आपको ही कहना पड़ता है। बापदादा ने देखा है कि एक संस्कार या नेचर कहो, नेचर तो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन सर्व का स्नेही और सर्व बातों में, सम्बन्ध में सफल, मन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता तब आ सकती है जब इज़ी नेचर हो। अलबेली नेचर नहीं। अलबेलापन अलग चीज़ है। इज़ी नेचर उसको कहा जाता है - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इज़ी कर देवे। इज़ी अर्थात् मिलनसार। टाइट नेचर बहुत टू-मच ऑफिशियल नहीं, ऑफिशियल रहना अच्छा है लेकिन टू-मच नहीं और समय पर जब समय ऐसा है, उस समय अगर कोई ऑफिशियल बन जाता है तो वह गुण के बजाए, उनकी विशेषता उस समय नहीं लगती। अपने को मोल्ड कर सके, मिलनसार हो सके, छोटा हो, बड़ा हो। बड़े से बड़ेपन में चल सके, छोटे से छोटेपन में चल सके। साथियों में साथी बनके चल सके, बड़ों से रिगार्ड से चल सके। इज़ी मोल्ड कर सके, शरीर भी इजी रखते हैं ना तो जहाँ भी चाहें मुड जाते हैं और टाइट होगा तो मुड नहीं सकेगा। अलबेला भी नहीं, इज़ी है तो जहाँ चाहे इज़ी हो जाए, अलबेला हो जाए। नहीं। बापदादा ने कहा ना इजी हो जाओ तो इज़ी हो गये, ऐसे नहीं करना। इज़ी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप बना सके। अच्छा –

डबल विदेशियों को अच्छा चांस मिला है। देखो, मधुबन वालों को भी इस सीज़न में चांस नहीं मिला है लेकिन विदेशियों को दो टर्न मिले हैं। लाडले हो गये ना! बापदादा को भी डबल विदेशी प्रिय लगते हैं क्योंकि हिम्मत रख अच्छे आगे बढ़ रहे हैं। हिम्मत अच्छी रखते हैं। हिम्मत वाले हो ना! कन्फ्यूज़ होने वाले तो नहीं हो ना! कन्फ्यूज़ होते हो? छोटी-छोटी बात पर कन्फ्यूज़ होते हो? हाँ नहीं कह रहे हैं। बापदादा ने देखा है कि पहले बहुत ज्यादा कन्फ्यूज़ होते थे, अभी फर्क है। हिम्मत अच्छी रखते हैं और हिम्मत होने के कारण बाप की मदद भी है। फर्क है ना? पहले से फर्क है ना! अभी कथायें कम होती हैं ना! लम्बी बातें नहीं करो। बात जरूर करो, दिल में नहीं रखो लेकिन शार्ट में करो। ज्यादा विस्तार जो 10 शब्द में स्पष्ट करो, वह 2- 3 शब्दों में बोल सकते हो क्योंकि बढ़ने तो हैं ही ना! अभी भी देखो बढ़ गये हैं ना! डबल फारेन की संख्या बढ़ गई है ना! और बढ़ने तो हैं ही। तो जब बढ़ते जाते हैं तो जरूर शार्ट करना पड़ेगा ना! फिर भी काफी हद तक साफ दिल भी रहते हैं, छिपाते कम हैं। बापदादा साफ दिल उसे कहते हैं - जिसमें स्वभाव-संस्कार, बोल, मन्सा संकल्प, ज़रा भी पुराना किचड़ा नहीं हो। ऐसा दिन कब आयेगा जो कोई भी चाहे भारतवासी, चाहे डबल फारेनर आवे, मिले और सिर्फ लाइन में सब कहें ओ.के., ओ.के.... आयेगा ऐसा दिन? जैसे आप लोगों ने अप्लीकेशन की है कि सेकण्ड-सेकण्ड दृष्टि लेते जाएं। तो बापदादा फिर कहते हैं आज तो आप लोगों की आशा पूर्ण करेंगे लेकिन ऐसा भी दिन लाओ, चाहे दादियों के पास, चाहे बापदादा के सामने, ऐसे लाइन में सब दिल से कहें, ओ.के.। यह हो सकता है? कुमार हो सकता है? (पूरी सभा से पूछा) तो यह खुशखबरी बहुत अच्छी है। तो कब होगा? फिर यह क्वेश्चन आता है कब? बताओ, आप लोग जो बड़े भाई हैं वह बताओ डेट कब? (अब)।

अच्छा - बापदादा समय देता है। अब कहेंगे तो सोचेंगे कि यह बात तो मेरे में है, यह निकालकर आयेंगे। लेकिन दूसरी सीज़न में ऐसी लाइन लगायें। 6 मास तो हैं, 8 मास हो जाते हैं। यह मंजूर है? मन से ओ.के. ऐसे नहीं ओ.के. ओ.के कहते जाओ... कुमारों में जो तैयार हैं वह हाथ उठाओ। आधे हैं, आधे नहीं हैं तो जिन्होंने हाथ नहीं उठाया उन्हों को कितना टाइम चाहिए? पूरा साल चाहिए? एक वर्ष में तैयार हो जायेंगे? एक वर्ष में जो तैयार हो जायेंगे वह हाथ उठाओ। अच्छा - एक मास चाहिए? जिन्होंने हाथ नहीं उठाया - वह चिटकी लिखकर दे देवें कितना समय चाहिए? ठीक है। अच्छा - बहनें तैयार हैं तो हाथ उठाओ। अच्छा जो कहते हैं अभी तैयार हैं, वह हाथ उठाओ। (बापदादा सर्टिफिकेट देंगे तो) बापदादा तो माला पहना देंगे। माला पहननी चाहिए ना? फारेन के पास-विद्-आनर बन गये तो माला में तो आ जायेंगे ना। तो माला जल्दी तैयार हो जायेगी। पक्के हैं ना! कच्चे नहीं बनना! अच्छा है। जो हिम्मत रखता है उसको एक्स्ट्रा मदद जरूर मिलती है। देखो जिनको दादियाँ कहते हो, वह दादियाँ कैसे बनी? हिम्मत रखी और अपने से पक्की प्रतिज्ञा की, हमको करना ही है, बनना ही है। तो आज दादियों की लिस्ट में हैं ना! तो डबल फारेनर्स को 108 की माला में आगे रखेंगे, तैयार हो जाओ। विजय माला में आने वाले दाने की सेरीमनी करेंगे। कोई भी आवे, सिर्फ आगे बैठने वाले नहीं, कोई भी आवे। बापदादा सेरीमनी करेंगे, विजयी रत्न। आगे वाले सब आना। आना है ना! कहो क्यों नहीं आयेंगे। हम नहीं आयेंगे तो कौन आयेगा! नशा रखो, निश्चय रखो तो क्या बड़ी बात है। बाप के बन तो गये, अभी वापस तो जाना नहीं है। अगर वापस भी जायेंगे तो न उस दुनिया के रहेंगे, न इस दुनिया के। इसलिए वापस तो जाना नहीं है। आगे ही बढ़ना है। जब संसार ही बाप हो गया, बाकी रहा ही क्या! बापदादा को डबल फारेनर्स में बहुत-बहुत श्रेष्ठ उम्मीदें हैं, आशायें हैं कि डबल फारेनर्स में से ऐसे रत्न निकलेंगे जो लास्ट सो फास्ट की लिस्ट में आयेंगे, फास्ट सो फर्स्ट। भारत वाले भी आयेंगे लेकिन आज डबल फारेनर्स सामने बैठे हैं इसलिए उन्हों को कह रहे हैं। लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट तो कितनी कमाल होगी। होनी तो है ही। सिर्फ कौन आगे आता है, वह प्रत्यक्ष होंगे। होना तो है ही। सेन्टर निवासी क्या समझते हो? फास्ट आयेंगे? बहुत अच्छा। बापदादा को खुशी है कि हिम्मत वाले अवश्य विजयी होने ही हैं। होंगे या नहीं होंगे, नहीं। होने ही हैं। तो ऐसी उम्मींद अपने में है?

सबसे ज्यादा दूरदेश से कौन आया है? ज्यादा दूरदेशी बापदादा है या आप? कितना भी आप कहो बहुत दूर से आये हैं, बापदादा से तो दूर कोई नहीं। तो सन्तुष्ट हैं? डबल फारेनर्स सन्तुष्ट हुए? स्पेशल मिला, खुश हैं? फिर तो नहीं कहेंगे यह हुआ, यह नहीं हुआ। अच्छा।

भारतवासी हाथ उठाओ जो यहाँ बैठे हैं। मधुबन वाले हाथ उठाओ। मधुबन वाले तो होशियार हैं।

मधुबन वालों का उल्हना रहा हुआ है कि टोली नहीं मिली है। तो बापदादा कहते हैं कि इस सीज़न में आप बापदादा द्वारा दिलखुश मिठाई खा लो। मधुबन वाले, शान्तिवन वाले, ज्ञान सरोवर है, हॉस्पिटल है, इन्हों का प्लैन बापदादा के पास है, कम्पलेन नहीं रहेगी। मधुबन वालों को तो खुश करना है ना, नहीं तो आप कैसे आयेंगे। इन्हों का हिस्सा तो पहले लगता है, जितनी मेहनत करते हैं चारों ओर, तो मेहनत का प्रत्यक्षफल तो मिलना ही चाहिए। सिर्फ समय नहीं है बाकी बापदादा तो पहले मधुबन निवासियों को याद करते हैं।

सबसे नये देश से कौन आया है, जो देश पहली बार आया हो? (करेबियन की तरफ से - क्वेट, कुरूसव, इजिप्ट) मुबारक हो। कोई भी परिवार में नये बच्चे पैदा होते हैं तो मुबारक देते हैं। आपके परिवार में भी एड हुए हैं। खुशी है ना!

अच्छा - सामने सेन्टर्स पर रहने वाले बैठे हैं। हाथ उठाओ। सेन्टर पर रहने वाले तो पक्के हैं, यह स्टैम्प लगा ली है ना! आलमाइटी गवर्मेन्ट द्वारा ``सदा पक्के हैं'', यह स्टैम्प लगाई है? लग गई है या हल्की लगी है? मिटने वाली भी है? ऐसी तो नहीं है ना? जो भी सेन्टर पर रहने वाले हैं वह समझते हैं कि हम अन्त तक बापदादा के साथी रहेंगे और साथ चलेंगे। अभी साथी रहेंगे और फिर साथ चलेंगे। ऐसे हैं तो हाथ उठाओ, टी.वी. निकालो। आपके फोटो बापदादा वतन में सजाकर रखेंगे। बहुत अच्छा। इनएडवान्स अन्त तक मुबारक हो। अच्छा है ना! एक भी अगर साथी नीचे-ऊपर होता है तो अच्छा तो नहीं लगता है ना! तो सभी साथ चलेंगे। आगे पीछे नहीं जाना, साथ चलेंगे। अभी भी सेवा में साथ रहेंगे और साथ चलेंगे अपने घर में और फिर राज्य में ब्रह्मा बाप के साथ रहेंगे। पक्का है ना! क्या बनेंगी? कृष्ण की सखी बनेंगी? (बहन बनेंगी) अच्छा है ना? (बाबा पर्सनल सामने वालों से पूछ रहे हैं) अगर यहाँ साथ हैं तो वायदा है वहाँ भी रहेंगी, बाप वायदा देते हैं। अगर यहाँ हैं तो वहाँ गैरन्टी हैं। यह सभी साथ रहेंगे या दूर-दूर रहेंगे? कभी-कभी मिलने आयेंगे! श्रीकृष्ण के साथ पढ़ना, साथ रास करना, साथ घूमना... पाण्डव भी रास करेंगे या सिर्फ बहनें ही करेंगी? दोनों को चांस है, जो चाहे वह कर सकता है क्योंकि अभी सीट फिक्स नहीं हुई है। सिर्फ दो सीट फिक्स हैं। 3-4 से खाली हैं। एनाउन्स नहीं हुई हैं। नम्बर ले सकते हो। अच्छा – कुमारों ने अच्छी भट्ठी की। टीचर कौन था?

(विदेश के यूथ की रिट्रीट ज्ञान सरोवर में चली) अच्छा रहा? अच्छा सभी को देखकर सबसे ज्यादा खुशी किसको होती है? बापदादा को तो है ही, फिर दूसरा? हर एक कहेगा मेरे को। बहुत अच्छा। दादियों को बहुत खुशी है। थकाते तो नहीं हैं? ज्यादा खुशी दादियों को होती है या आप लोगों को होती है? (दोनों को होती है) अच्छा - अभी डबल फारेनर्स से पर्सनल मिले ना। चिटचैट भी की। दूर बैठे भी नज़दीक हैं।

टीचर्स बहुत हैं, अच्छा है डबल पार्ट बजा रहे हो। डबल पार्ट बजाने वालों को डबल मदद मिलती है। हिम्मत अच्छी है। अच्छा।

सभी को ड्रिल याद है या भूल गई? अभी-अभी सभी यह ड्रिल करो, लगाओ चक्कर। अच्छा।

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर से याद प्यार, समाचार भेजने वालों को बहुत अच्छे भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से स्नेह के पत्र और अपना हालचाल लिखा है, सेवा समाचार उमंग, प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे लिखे हैं, जो बापदादा को मिल ही गये। जिस प्यार से, मेहनत से लिखा है तो जिन्होंने भी लिखा है, वह हर एक अपने-अपने नाम से बापदादा का, दिलाराम का दिल से यादप्यार स्वीकार करें। बच्चों का प्यार बाप से और उससे पदमगुणा बाप का बच्चों से प्यार है और सदा अमर है। स्नेही बच्चे, न बाप से अलग हो सकते हैं, न बाप बच्चों से अलग हो सकते हैं। साथ हैं, साथ ही रहेंगे।

चारों ओर के सदा स्वयं को बाप समान बनाने वाले, सदा बाप के नयनों में, दिल में, मस्तक में समीप रहने वाले, सदा एक बाप के संसार में रहने वाले, सदा हर कदम में बापदादा को फालो करने वाले, सदा विजयी थे, विजयी हैं और विजयी रहेंगे - ऐसे निश्चय और नशे में रहने वाले, ऐसे अति श्रेष्ठ सिकीलधे, प्यारे ते प्यारे, सर्व बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जी और दादी जानकी बापदादा से गले मिल रही हैं

सभी खुश हो रहे हैं ना या सोचते कि हम भी दादियां होते! अच्छा है सभी का प्यार, यही दुआयें देता है। प्यार है इसलिए सभी को खुशी होती है। बस खुश रहना, कभी भी मूड आफ नहीं करना। सदा एकरस खुशनुम: चेहरा हो। जो भी देखे उसे रूहानी खुशी की अनुभूति हो। यह सेवा का साधन है। चेहरे पर रूहानी खुशी हो, साधारण खुशी नहीं, रूहानी खुशी। फेस चेंज नहीं हो। जैसे एकरस स्थिति, वैसे ही एकरस चेहरा हो। हो सकता है? एकरस मूड हो? हो सकता है या होना ही है? होगा ना अभी? कभी भी कोई भी अचानक आपका फोटो निकाले तो और कोई फोटो नहीं आवे, रूहानी मुस्कराहट का फोटो हो। चाहे कामकाज भी कर रहे हो, सर्विस का बहुत टेन्शन हो लेकिन चेहरे पर खुशी हो। फिर आपको ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। एक घण्टा बोलने के बजाए अगर आपका रूहानी मुस्कान का चेहरा होगा तो वह एक घण्टे के बोलने की सेवा एक सेकण्ड में करेगा क्योंकि प्रत्यक्ष को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होती है। जो भी मिले, जैसा भी मिले, गाली देने वाला मिले, इनसल्ट करने वाला मिले, इज्जत न रखने वाला मिले, मान-शान न देने वाला मिले, लेकिन आपका एकरस चेहरा, रूहानी मुस्कान। हो सकता है? कुमार हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? और पुरूषार्थ से बच जायेंगे। मेहनत नहीं लगेगी। मुझे रूहानी मुस्कान ही मुस्कराना है। कुछ भी हो जाए, मुझे अपनी मुस्कान छोड़नी नहीं है, हो सकता है? सोच रहे हैं? (करके दिखायेंगे) बहुत अच्छा, मुबारक हो! जो सामने बैठे हैं उन्हों को तो करना ही पड़ेगा। अच्छा है ना - खुद भी खुश दूसरे भी खुश और चाहिए क्या? बापदादा तो खुश है ही, दादियां भी खुश।

(बाबा आप ऐसे ही मिलते रहें) और नहीं मिले तो खुशी गुम। आप सदा मुस्कराते रहें, बाप मिलता रहेगा। बहुत अच्छा।

ओमशान्ति।